NCERT Solutions for Chapter 16 वन के मार्ग में Class 6 Hindi Vasant I

यह पंक्तियाँ तुलसीदास जी के ग्रन्थ से लिए गए हैं जिसमे श्रीराम जी और माता सीता के एक दूसरे के प्रति प्रेम को दर्शाया गया है। जब श्रीराम लक्षमण और माता सीता वनवास के लिए निकलते हैं तो कुछ दूर चलते ही माता सीता के माथे पर पसीने की बुँदे आ जाती है और उनके होंठ सूखने लगते हैं। क्योंकि माता सीता बहुत धैर्य धारण करके निकली थी इसीलिए वह प्रश्न करती है की और कितनी दूर चलना होगा?, पत्तो की कुटिया कहा बनेगी?
माता सीता की आतुरता देखकर श्रीराम की आँखों में आंसू आ जाते हैं। इसके बाद माता सीता श्रीराम जी से कहती है की लक्ष्मण तो पानी लाने गए है तो उनको समय लग जायेगा तब तक मैं आपके पसीने को पोंछकर हवा कर देती हूँ और आपके गर्म तपे पैर को भी धो देती हूँ। श्रीराम जी माता सीता की ऐसी बातों को सुनकर और उनकी आतुरता देखकर उनके पैर में गड़े काँटों को निकलते हैं। श्रीराम जी का ऐसा प्रेम देखकर माता सीता के आँखों में ख़ुशी से आंसू आ गए और वह खुश होने लगी। 
NCERT Solutions for Class 6th Hindi Chapter 16 वन के मार्ग में

वन के मार्ग में Questions and Answers


Chapter Name

वन के मार्ग में NCERT Solutions

Class

CBSE Class 6

Textbook Name

Vasant I

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प्रश्नावली

सवैया से :

प्रश्न 1. नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीता की क्या दशा हुई?

उत्तर 

नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीताजी के भल पर पसीना आने लग गया तथा उनके मधुर व कोमल होंठ सूख गए |


प्रश्न 2. 'अब और कितनी दूर चलना है, पर्णकुटी कहाँ बनाइएगा ' - यह किसने किससे पूछा और क्यों?

उत्तर 

'अब और कितनी दूर चलना है, पर्णकुटी कहाँ बनाइएगा ' - यह सीता माता ने श्रीराम से पूछा क्योंकि वह चलते - चलते थक गई थी|


प्रश्न 3. राम ने थकी हुई सीता की क्या सहायता की?

उत्तर 

सीता जी को थका हुआ देखकर श्रीराम बहुत देर तक उनके पाँव से कांटा निकालने का अभिनय करने लगे ताकि सीता जी को आराम करने के लिए कुछ समय मिल जाए |


प्रश्न 4. दोनों सवैया के प्रसंगो में अंतर स्पष्ट करो |

उत्तर 

प्रथम सवैये में वनवास को जाते हुए सीताजी की थकावट का वर्णन किया गया है | सीताजी अयोध्या नगर से दो कदम दूर चलने के बाद थक जाती है, उनके माथे पर पसीना आने लगता है, उनके कोमल होंठ सूख जाते हैं | वह श्रीराम से बड़ी व्याकुलता से पूछती है कि पर्णकुटी कहाँ बनानी है तथा अब कितनी दूर चलना है? सीताजी को इस दशा में देखकर श्रीराम के आँखें नम हों जाती हैं, ।

दूसरे सवैये में श्रीराम का सीता जी के प्रति परम दिखाया गया है | सीता जी को थका हुआ देखकर श्रीराम बहुत देर तक अपने पाँव से कांटा निकालने का अभिनय करने लगे ताकि सीता जी को आराम करने के लिए कुछ समय मिल जाये |


प्रश्न 5. पाठ के आधार पर वन के मार्ग का वर्णन अपने शब्दों में करो ।

उत्तर 

वन का मार्ग अत्यंत कठिन था । मार्ग में बहुत सारे कांटे थे | बीच में कहीं पानी का स्रोत नहीं था । दिन का समय था तथा बहुत गर्मी पड़ रही थी |


अनुमान और कल्पना :

प्रश्न 1. गर्मी के दिनों में कच्ची सड़क की तपती धूल में नंगे पाँव चलने पर पाँव जलते हैं । ऐसी स्थिति में पेड़ की छाया में खड़ा होने और पाँव धोने पर बड़ी राहत मिलती है | ठीक वैसे ही जैसे प्यास लगने पर पानी मिल जाये और भूख लगने पर भोजन | तुम्हें भी किसी वस्तु की आवश्यकता हुई होगी और वह कुछ समय बाद पूरी हो गई होगी । तुम सोचकर लिखो कि आवश्यकता पूरी होने के पहले तक तुम्हारे मन की दशा कैसी थी?

उत्तर 

किसी वस्तु की आवश्यकता पूरी होने के पहले तक हमारे मन में बहुत व्याकुलता रहती है | उस वस्तु के विचार बार - बार दिमाग़ में आते रहते है तथा उसे प्राप्त करने के लिए अनेक प्रयास करते हैं ।


भाषा की बात :

प्रश्न 1.

लखि - देखकर

धरि - रखकर

पोंछि - पोंछकर

जानि – जानकर

ऊपर लिखें शब्दों और उनके अर्थों को ध्यान से देखो | हिंदी में जिस उद्धेश्य के लिए हम क्रिया में 'कर' जोड़ते हैं, उसी के लिए अवधी में क्रिया में (इ) को जोड़ा जाता है, जैसे - अवधी में बैठ + = बैठि और हिंदी में बैठ + कर = बैठकर | तुम्हारी भाषा या बोली में क्या होता है? अपनी भाषा के ऐसे छह शब्द लिखो | उन्हें ध्यान से देखो और कक्षा में बताओ।

उत्तर 

मेरी भाषा हिंदी ख़डी बोली है ।

हिंदी

भोजपुरी

पीकर

पी के

सोकर

सो के

जागकर

जाग के

रुककर

ठहर के

रखकर

रख के

देखकर

ताक के


प्रश्न 2. "मिट्टी का गहरा अंधकार, डूबा है उसमे एक बीज |"उसमे एक बीज डूबा हुआ है | जब हम किसी बात को कविता में कहते हैं तो वाक्य के शब्दों के क्रम में बदलाव आता है, जैसे - "छाँह घरीक ह्वै ठाढे " को गद्य में ऐसे लिखा जाता सकता है "छाया में वक घड़ी खड़ा होकर "| उदाहरण के आधार पर नीचे दी गई कविता की पंक्तियों के गद्य के शब्दक्रम में लिखो |

पुर तें निकसी रघुबीर - बधू

पुट सूखि गए मधुराधर वै ||

बैठि विलम्ब लौं कंटक काढ़े।

पर्णकुटी करिहौं कित है?

उत्तर 

पुर तें निकसी रघुबीर - बधू = सीताजी नगर से वन की ओर प्रस्थान किया

पुट सूख गए मधुराधर वै || = सीताजी के मधुर होंठ सूख गए ।

बैठि बिलम्ब लौं कंटक काढ़े । = श्रीराम ने कुछ देर बैठकर होने पांवो में से काँटे निकाले ।

पर्णकुटी करिहौं कित है? = पर्णकुटी कहां बनाएंगे?

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