NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण - रवींद्रनाथ ठाकुर
Chapter Name | NCERT Solutions for Chapter 9 रवींद्रनाथ ठाकुर - आत्मत्राण (Aatmtran - Ravindra Thakur) |
Author Name | रवींद्रनाथ ठाकुर (Ravindranath Thakur) 1861-1941 |
Related Study |
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Topics Covered | (क) प्रश्नोत्तर (ख) भाव स्पष्ट |
NCERT Solutions for Chapter 9 रवींद्रनाथ ठाकुर - आत्मत्राण Class 10 Hindi प्रश्नोत्तर
क. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर
प्रस्तुत कविता में कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि चाहे प्रभु उन्हें विपत्तियों से दूर ना रखें, लेकिन उन्हें इतनी शक्ति प्रदान करें कि वे उन विपत्तियों का निडर होकर सामना कर सकें। ऐसी मुश्किल घड़ी में भी उनका स्वयं पर और ईश्वर पर विश्वास बना रहे।
2. ‘विपदाओं से मुझे बचाओं, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ – कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर
जिस प्रकार आग का तप कच्चे घड़े को पक्का और मजबूत बनाता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में आने वाली बाधाएं, संकट और दुःख उसे परिपक्व बनाते हैं; इसीलिए कवि ने इस पंक्ति द्वारा ईश्वर से प्रार्थना की है, कि ईश्वर उन्हें संकटों और विपत्तियों से नए बचाए, लेकिन उन्हें जीवन की उन रुकावटों का निडर होकर सामना करने की शक्ति प्रदान करें, ताकि उनका हौसला और आत्मविश्वास कभी न डगमगाए।
3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर
अनुकूल परिस्थितियों में सहायक के न मिलने पर कवि ने ईश्वर से विनती करी है की ऐसी परिस्थितियों में भी उसका बल-पौरुष न डगमगाए, उसके मन में कभी संकोच जगह न बना पाए, उसका आत्मविश्वास और ईश्वर के प्रति आस्था हमेशा बनी रहे व वह निडर होकर और धैर्यपूर्वक उन विपरीत परिस्थितियों में भी खड़ा रहे।
4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर
कविता के अंत में कवि ने ईश्वर से अनुनय किया है कि प्रभु उन्हें इतनी आत्मशक्ति प्रदान करें कि वे निडर होकर व धैर्यपूर्वक हर विपरीत परिस्थिति का सामना कर सकें; अपने अच्छे दिनों में भी हर क्षण ईश्वर को स्मरण करते रहे और दुःख की ऐसी परिस्थिति में जब पूरी दुनिया उनका साथ छोड़ दे व उनको धोखा दे जाए, तब भी उनके मन में ईश्वर के प्रति विश्वास और आस्था बनी रहे।
5. आत्मत्राण शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत कविता आत्मत्राण का शीर्षक संपूर्ण रूप से सार्थक है, क्योंकि आत्मत्राण का अर्थ होता है- आत्मा या मन के भय का निवारण और इस कविता में कवि ने करुणामय ईश्वर से विनती की है कि वे उसे जीवन में आने वाली हर बाधा, विपत्ति और आपदा से पूरे आत्मविश्वास के साथ व धैर्यपूर्वक लड़ने की क्षमता प्रदान करें। प्रभु उन्हें हर दुःख सहने का आत्मबल प्रदान करें, ताकि उसका स्वयं पर से और ईश्वर पर से विश्वास कभी ना डगमगाए।
6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
उत्तर
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने के अतिरिक्त हम कड़ी मेहनत और संघर्ष करते हैं। जब तक सफलता हासिल नहीं हो जाती, तब तक निरंतर प्रयास करते रहते हैं और धैर्यपूर्वक परिणाम का इंतजार करते हैं। अगर परिणाम हमारे पक्ष में नहीं होता, तो आत्मविश्वास ना खोकर अपनी गलतियां सुधारकर दोबारा प्रयत्न करते हैं।
7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर
प्रस्तुत कविता अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य प्रार्थना गीत प्रभु की भक्ति, आत्म-समर्पण, जीवन से सभी दुःख-दर्दों को दूर करके सुख-समृद्धि, कल्याण, शांति मानवता के विकास, आदि पर आधारित होते हैं, लेकिन इस कविता में दुखों से छुटकारा नहीं बल्कि दुखों को सहने की शक्ति प्रदान करने के लिए प्रार्थना की गई है। इस कविता में ईश्वर में आस्था बनाएं रखने और कर्मशील बने रहने की प्रार्थना की गई। इस कविता में किसी सांसारिक या भौतिक सुख की कामना नहीं की गई है।
NCERT Solutions for Chapter 9 रवींद्रनाथ ठाकुर - आत्मत्राण Class 10 Hindi भाव स्पष्ट
ख. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
1. नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है कि वह सुख की परिस्थितियों और दुःख की परिस्थितियों- दोनों में ही ईश्वर के प्रति समान रूप से आस्था और विश्वास बनाए रखना चाहता है। वह सुख के दिनों में भी हर पल ईश्वर का स्मरण करना चाहता है और चाहता है कि दुःख के पल में भी कभी उसे अपने ईश्वर पर संदेह ना हो।
2. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है कि चाहे उसे जीवन में लाभ मिले या हानि मिले, लेकिन उसका आत्मविश्वास हमेशा बना रहे और मनोबल कभी न डगमगाए। वह कभी परिस्थितियों से हार न माने और हर परिस्थिति का सामना धैर्यपूर्वक एवं आत्मविश्वास के साथ कर सके।
3. तरने की हो शक्ति अनामय
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि चाहे ईश्वर उन्हें सांत्वना देकर, उनके दुख-दर्दों का भार कम ना करें; लेकिन उन्हें इतना आत्मबल और शक्ति प्रदान करें, ताकि वे खुद बिना हार माने, निरंतर प्रगतिशील रहें और इस संसार-रूपी भवसागर को पार कर सकें।