ICSE Solutions for पाठ 17 चलना हमारा काम है Poem (Chalna Hamara Kam hai) Class 10 Hindi Sahitya Sagar
ICSE Solutions for चलना हमारा काम है by Shivmangal Singh ‘Suman’
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गईं
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गईं
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
(i) कवि के पैरों में कैसी गति भरी पड़ी है?
उत्तर:
कवि के पैरों में प्रबल गति भरी पड़ी है।
(ii) कवि दर-दर क्यों खड़ा नहीं होना चाहता?
उत्तर :
कवि के पैरों में प्रबल गति है, तो फिर उसे दर-दर खड़ा होने की क्या आवश्यकता है।
(iii) कवि का रास्ता आसानी से कैसे कट गया?
उत्तर:
कवि को रस्ते में एक साथिन मिल गई जिससे उसने कुछ कह लिया और कुछ उसकी बातें सुन लीं जिसके कारण उसका बोझ कुछ कम हो गया और रास्ता आसानी से कट गया।
(iv) शब्दार्थ लिखिए –
गति, प्रबल, विराम, मंज़िल
उत्तर:
गति – चाल
प्रबल – रफ्तार
विराम – आराम
मंज़िल – लक्ष्य
प्रश्न ख: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उत्तर:
कवि के पैरों में प्रबल गति भरी पड़ी है।
(ii) कवि दर-दर क्यों खड़ा नहीं होना चाहता?
उत्तर :
कवि के पैरों में प्रबल गति है, तो फिर उसे दर-दर खड़ा होने की क्या आवश्यकता है।
(iii) कवि का रास्ता आसानी से कैसे कट गया?
उत्तर:
कवि को रस्ते में एक साथिन मिल गई जिससे उसने कुछ कह लिया और कुछ उसकी बातें सुन लीं जिसके कारण उसका बोझ कुछ कम हो गया और रास्ता आसानी से कट गया।
(iv) शब्दार्थ लिखिए –
गति, प्रबल, विराम, मंज़िल
उत्तर:
गति – चाल
प्रबल – रफ्तार
विराम – आराम
मंज़िल – लक्ष्य
प्रश्न ख: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठों याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठों याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
(i) मनुष्य जीवन में किससे घिरा रहता है?
उत्तर:
मनुष्य जीवन में आशा और निराशा से घिरा रहता है।
(ii) कवि ने जीवन को अपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर:
मनुष्य जीवन में कभी सुख तो कभी दुःख आते है। कभी कुछ पाता है तो कभी खोता है। आशा और निराशा से घिरा रहता है। इसलिए कवि ने जीवन को अपूर्ण कहा है।
(iii) ‘फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि के अनुसार इस संसार में हर व्यक्ति को सुख और दुख सहना पड़ता है और ईश्वर के आदेश के अनुसार चलना पड़ता है। इसीलिए कवि कहता है कि दुःख आने पर में क्यों कहता फिरूँ के मुझसे विधाता रुष्ट है।
(iv) शब्दार्थ लिखिए –
अपूर्ण, आठों याम, विशद, वाम
उत्तर:
अपूर्ण – जो पूरा न हो
आठों याम – आठ पहर
विशद – बड़े
वाम – विरुद्ध
प्रश्न ग: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उत्तर:
मनुष्य जीवन में आशा और निराशा से घिरा रहता है।
(ii) कवि ने जीवन को अपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर:
मनुष्य जीवन में कभी सुख तो कभी दुःख आते है। कभी कुछ पाता है तो कभी खोता है। आशा और निराशा से घिरा रहता है। इसलिए कवि ने जीवन को अपूर्ण कहा है।
(iii) ‘फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि के अनुसार इस संसार में हर व्यक्ति को सुख और दुख सहना पड़ता है और ईश्वर के आदेश के अनुसार चलना पड़ता है। इसीलिए कवि कहता है कि दुःख आने पर में क्यों कहता फिरूँ के मुझसे विधाता रुष्ट है।
(iv) शब्दार्थ लिखिए –
अपूर्ण, आठों याम, विशद, वाम
उत्तर:
अपूर्ण – जो पूरा न हो
आठों याम – आठ पहर
विशद – बड़े
वाम – विरुद्ध
प्रश्न ग: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है
(i) जो गिर गए सो गिर गए रहे हर दम, उसी की सफलता अभिराम है, चलना हमारा काम है।’ पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति का आशय निरंतर गतिशीलता से है। जीवन के पड़ाव में कई मोड़ आते हैं, कई साथी मिलते है, कुछ साथ चलते हैं तो कुछ बिछड़ भी जाते हैं। पर इसका यह अर्थ नहीं कि जीवन थम जाए जो भी कारण हो लेकिन जीवन को अबाध गति से चलते ही रहना चाहिए।
(ii) प्रस्तुत कविता में कवि दर-दर क्यों भटकता है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि पूर्णता की चाह रखता है और इसी पूर्णता को पाने के लिए वह दर-दर भटकता है।
(iii) शब्दार्थ लिखिए –
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति का आशय निरंतर गतिशीलता से है। जीवन के पड़ाव में कई मोड़ आते हैं, कई साथी मिलते है, कुछ साथ चलते हैं तो कुछ बिछड़ भी जाते हैं। पर इसका यह अर्थ नहीं कि जीवन थम जाए जो भी कारण हो लेकिन जीवन को अबाध गति से चलते ही रहना चाहिए।
(ii) प्रस्तुत कविता में कवि दर-दर क्यों भटकता है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि पूर्णता की चाह रखता है और इसी पूर्णता को पाने के लिए वह दर-दर भटकता है।
(iii) शब्दार्थ लिखिए –
रोड़ा, निराशा, अभिराम
उत्तर:
रोड़ा – बाधा
निराशा – दुःख
अभिराम – सुंदर
(iv) ‘जीवन इसी का नाम है से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जीवन इसी का नाम से तात्पर्य आगे बढ़ने में आने वाली रुकावटों से है। कवि के अनुसार इस जीवन रूपी पथ पर आगे बढ़ते हुए हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है परंतु हमें निराश या थककर नहीं बैठना चाहिए। जीवन पथ पर आगे बढ़ते हुए बाधाओं का आना स्वाभाविक है क्योंकि जीवन इसी का नाम होता है जब हम इन बाधाओं को पार कर आगे बढ़ते हैं।
उत्तर:
रोड़ा – बाधा
निराशा – दुःख
अभिराम – सुंदर
(iv) ‘जीवन इसी का नाम है से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जीवन इसी का नाम से तात्पर्य आगे बढ़ने में आने वाली रुकावटों से है। कवि के अनुसार इस जीवन रूपी पथ पर आगे बढ़ते हुए हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है परंतु हमें निराश या थककर नहीं बैठना चाहिए। जीवन पथ पर आगे बढ़ते हुए बाधाओं का आना स्वाभाविक है क्योंकि जीवन इसी का नाम होता है जब हम इन बाधाओं को पार कर आगे बढ़ते हैं।