ICSE Solutions for बात अठन्नी की by Sudarshan
प्रश्न क: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
(i) वह सोचता, ”यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर नहीं मिलेगा।”
उपर्युक्त वाक्य के वक्ता का परिचय दें।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य का वक्ता इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर रसीला है। वह सालों से इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर है।
(ii) वह सोचता, ”यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर नहीं मिलेगा।”
रसीला बार-बार किससे, कौन-सी और क्यों प्रार्थना करता था?
उत्तर :
रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर था। वह सालों से इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर था। उसे दस रूपए वेतन मिलता था। गाँव में उसके बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़के थे। इन सबका भार उसी के कंधों पर था। इसी कारण वह बार-बार अपने मालिक इंजीनियर बाबू जगतसिंह से अपना वेतन बढ़ाने की प्रार्थना करता था।
(iii) वह सोचता, ”यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर नहीं मिलेगा।”
वेतन की बात पर इंजीनियर बाबू जगतसिंह का जवाब क्या होता था?
उत्तर:
रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर था। वह सालों से इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर था। उसे दस रूपए वेतन मिलता था। गाँव में उसके बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़के थे। इन सबका भार उसी के कंधों पर था। इसी कारण वह बार-बार अपने मालिक इंजीनियर बाबू जगतसिंह से अपना वेतन बढ़ाने की माँग करता था। परंतु हर बार इंजीनियर साहब का यही जवाब होता था कि वे रसीला की तनख्वाह नहीं बढ़ाएँगे यदि उसे यहाँ से ज्यादा और कोई तनख्वाह देता है तो वह बेशक जा सकता है।
(iv) वह सोचता, ”यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर नहीं मिलेगा।”
तनख्वाह न बढ़ाने के बावजूद रसीला नौकरी क्यों नहीं छोड़ना चाहता था?
उत्तर:
रसीला बार-बार अपने मालिक से तनख्वाह बढ़ाने की माँग करता था और हर बार उसकी माँग ठुकरा दी जाती थी परंतु इस सबके बावजूद रसीला यह नौकरी नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि अमीर लोग किसी पर विश्वास नहीं करते हैं। यहाँ पर रसीला सालों से नौकरी कर रहा था और कभी किसी ने उस पर संदेह नहीं किया था। दूसरी जगह भले उसे यहाँ से ज्यादा तनख्वाह मिले पर इस घर जैसा आदर नहीं मिलेगा।
प्रश्न ख: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उपर्युक्त वाक्य के वक्ता का परिचय दें।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य का वक्ता इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर रसीला है। वह सालों से इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर है।
(ii) वह सोचता, ”यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर नहीं मिलेगा।”
रसीला बार-बार किससे, कौन-सी और क्यों प्रार्थना करता था?
उत्तर :
रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर था। वह सालों से इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर था। उसे दस रूपए वेतन मिलता था। गाँव में उसके बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़के थे। इन सबका भार उसी के कंधों पर था। इसी कारण वह बार-बार अपने मालिक इंजीनियर बाबू जगतसिंह से अपना वेतन बढ़ाने की प्रार्थना करता था।
(iii) वह सोचता, ”यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर नहीं मिलेगा।”
वेतन की बात पर इंजीनियर बाबू जगतसिंह का जवाब क्या होता था?
उत्तर:
रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर था। वह सालों से इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर था। उसे दस रूपए वेतन मिलता था। गाँव में उसके बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़के थे। इन सबका भार उसी के कंधों पर था। इसी कारण वह बार-बार अपने मालिक इंजीनियर बाबू जगतसिंह से अपना वेतन बढ़ाने की माँग करता था। परंतु हर बार इंजीनियर साहब का यही जवाब होता था कि वे रसीला की तनख्वाह नहीं बढ़ाएँगे यदि उसे यहाँ से ज्यादा और कोई तनख्वाह देता है तो वह बेशक जा सकता है।
(iv) वह सोचता, ”यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर नहीं मिलेगा।”
तनख्वाह न बढ़ाने के बावजूद रसीला नौकरी क्यों नहीं छोड़ना चाहता था?
उत्तर:
रसीला बार-बार अपने मालिक से तनख्वाह बढ़ाने की माँग करता था और हर बार उसकी माँग ठुकरा दी जाती थी परंतु इस सबके बावजूद रसीला यह नौकरी नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि अमीर लोग किसी पर विश्वास नहीं करते हैं। यहाँ पर रसीला सालों से नौकरी कर रहा था और कभी किसी ने उस पर संदेह नहीं किया था। दूसरी जगह भले उसे यहाँ से ज्यादा तनख्वाह मिले पर इस घर जैसा आदर नहीं मिलेगा।
प्रश्न ख: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
(i) पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, ”कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
उपर्युक्त वाक्य के वक्ता तथा श्रोता का परिचय दें।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य का वक्ता ज़िला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन का चौकीदार मियाँ रमजान हैं और वक्ता उनके पड़ोसी इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर रसीला है। दोनों बड़े ही अच्छे मित्र थे।
(ii) पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, ”कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
वक्ता श्रोता को सौगंध खाने के लिए क्यों कहता है?
उत्तर:
एक दिन रमजान ने रसीला को बहुत ही उदास देखा। रमजान ने अपने मित्र रसीला की उदासी का कारण जानना चाहा परंतु रसीला उससे छिपाता रहा तब रमजान ने उसकी उदासी का कारण जानने के लिए उसे सौगंध खाने के लिए कहा।
(iii) पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, ”कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
श्रोता की उदासी का कारण क्या था?
उत्तर:
श्रोता रसीला का परिवार गाँव में रहता था। उसके परिवार में बूढ़े पिता, पत्नी और तीन बच्चे थे। इन सबका भार उसी के कंधों पर था और रसीला को मासिक तनख्वाह मात्र दस रुपए मिलती थी पूरे पैसे भेजने के बाद भी घर का गुजारा नहीं हो पाता था उसपर गाँव से ख़त आया था कि बच्चे बीमार है पैसे भेजो। रसीला के पास गाँव भेजने के लिए पैसे नहीं थे और यही उसकी उदासी का कारण था।
(iv) पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, ”कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
वक्ता ने श्रोता की परेशानी का क्या हल सुझाया?
उत्तर:
वक्ता ने श्रोता की परेशानी का यह हल सुझाया कि वह सालों से अपने मालिक के यहाँ काम कर रहा है तो वह अपने मालिक से कुछ रुपए पेशगी के क्यों नहीं माँग लेता?
प्रश्न ग: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उपर्युक्त वाक्य के वक्ता तथा श्रोता का परिचय दें।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य का वक्ता ज़िला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन का चौकीदार मियाँ रमजान हैं और वक्ता उनके पड़ोसी इंजीनियर बाबू जगतसिंह का नौकर रसीला है। दोनों बड़े ही अच्छे मित्र थे।
(ii) पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, ”कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
वक्ता श्रोता को सौगंध खाने के लिए क्यों कहता है?
उत्तर:
एक दिन रमजान ने रसीला को बहुत ही उदास देखा। रमजान ने अपने मित्र रसीला की उदासी का कारण जानना चाहा परंतु रसीला उससे छिपाता रहा तब रमजान ने उसकी उदासी का कारण जानने के लिए उसे सौगंध खाने के लिए कहा।
(iii) पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, ”कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
श्रोता की उदासी का कारण क्या था?
उत्तर:
श्रोता रसीला का परिवार गाँव में रहता था। उसके परिवार में बूढ़े पिता, पत्नी और तीन बच्चे थे। इन सबका भार उसी के कंधों पर था और रसीला को मासिक तनख्वाह मात्र दस रुपए मिलती थी पूरे पैसे भेजने के बाद भी घर का गुजारा नहीं हो पाता था उसपर गाँव से ख़त आया था कि बच्चे बीमार है पैसे भेजो। रसीला के पास गाँव भेजने के लिए पैसे नहीं थे और यही उसकी उदासी का कारण था।
(iv) पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, ”कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
वक्ता ने श्रोता की परेशानी का क्या हल सुझाया?
उत्तर:
वक्ता ने श्रोता की परेशानी का यह हल सुझाया कि वह सालों से अपने मालिक के यहाँ काम कर रहा है तो वह अपने मालिक से कुछ रुपए पेशगी के क्यों नहीं माँग लेता?
प्रश्न ग: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
(i) भैया गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।”
यहाँ पर किस गुनाह की बात की जा रही है?
उत्तर:
यहाँ पर रमजान और रसीला अपने-अपने मालिकों के रिश्वत लेने वाले गुनाह की बात कर रहे हैं। रसीला ने जब रमजान को बताया कि उसके मालिक जगत सिंह ने पाँच सौ रूपए की रिश्वत ली है। तो इस पर रमजान ने कहा यह तो कुछ भी नहीं उसके मालिक शेख साहब तो जगत सिंह के भी गुरु हैं, उन्होंने भी आज ही एक शिकार फाँसा है हजार से कम में शेख साहब नहीं मानेंगे।
इस प्रकार यहाँ पर मालिकों के रिश्वत के गुनाह की चर्चा की जा रही है।
(ii) भैया गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।”
उपर्युक्त कथन रमजान ने रसीला से क्यों कहा?
उत्तर:
रमजान और रसीला दोनों ही नौकर थे। दिन रात परिश्रम करने के बाद भी बड़ी मुश्किल से उनका गुजारा होता था। रसीला के मालिक तो बार-बार प्रार्थना करने के बाद भी उसका वेतन बढ़ाने के लिए तैयार नहीं थे। दोनों यह बात भी जानते थे कि उनके मालिक रिश्वत से बहुत पैसा कमाते हैं। इसी बात की चर्चा करते समय रमजान ने उपर्युक्त कथन कहे।
(iii) भैया गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।”
ऐसी कमाई से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ में ऐसी कमाई से तात्पर्य रिश्वत से है। यहाँ पर स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार सफेदपोश लोग ही इस कार्य में लिप्त रहते हैं। अच्छा ख़ासा वेतन मिलने के बाद भी इनकी लालच की भूख मिटती नहीं है और रिश्वत को कमाई का एक और जरिया बना लेते हैं। इसके विपरीत परिश्रम करने वाला दाल-रोटी का जुगाड़ भी नहीं कर पाता और सदैव कष्ट में ही रहता है।
(iv) भैया गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।”
रमजान की उपर्युक्त बात सुनकर रसीला के मन में क्या विचार आया?
उत्तर:
रमजान की उपर्युक्त बात सुनकर यह आया कि सालों से वह इंजीनियर जगत बाबू के यहाँ काम कर रहा है इस बीच इस घर में उसके हाथ के नीचे से सैकड़ों रूपए निकल गए पर कभी उसका धर्म और नियत नहीं बिगड़ी। एक-एक आना भी उड़ाता तो काफी रकम जुड़ जाती।
प्रश्न घ: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यहाँ पर किस गुनाह की बात की जा रही है?
उत्तर:
यहाँ पर रमजान और रसीला अपने-अपने मालिकों के रिश्वत लेने वाले गुनाह की बात कर रहे हैं। रसीला ने जब रमजान को बताया कि उसके मालिक जगत सिंह ने पाँच सौ रूपए की रिश्वत ली है। तो इस पर रमजान ने कहा यह तो कुछ भी नहीं उसके मालिक शेख साहब तो जगत सिंह के भी गुरु हैं, उन्होंने भी आज ही एक शिकार फाँसा है हजार से कम में शेख साहब नहीं मानेंगे।
इस प्रकार यहाँ पर मालिकों के रिश्वत के गुनाह की चर्चा की जा रही है।
(ii) भैया गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।”
उपर्युक्त कथन रमजान ने रसीला से क्यों कहा?
उत्तर:
रमजान और रसीला दोनों ही नौकर थे। दिन रात परिश्रम करने के बाद भी बड़ी मुश्किल से उनका गुजारा होता था। रसीला के मालिक तो बार-बार प्रार्थना करने के बाद भी उसका वेतन बढ़ाने के लिए तैयार नहीं थे। दोनों यह बात भी जानते थे कि उनके मालिक रिश्वत से बहुत पैसा कमाते हैं। इसी बात की चर्चा करते समय रमजान ने उपर्युक्त कथन कहे।
(iii) भैया गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।”
ऐसी कमाई से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ में ऐसी कमाई से तात्पर्य रिश्वत से है। यहाँ पर स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार सफेदपोश लोग ही इस कार्य में लिप्त रहते हैं। अच्छा ख़ासा वेतन मिलने के बाद भी इनकी लालच की भूख मिटती नहीं है और रिश्वत को कमाई का एक और जरिया बना लेते हैं। इसके विपरीत परिश्रम करने वाला दाल-रोटी का जुगाड़ भी नहीं कर पाता और सदैव कष्ट में ही रहता है।
(iv) भैया गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।”
रमजान की उपर्युक्त बात सुनकर रसीला के मन में क्या विचार आया?
उत्तर:
रमजान की उपर्युक्त बात सुनकर यह आया कि सालों से वह इंजीनियर जगत बाबू के यहाँ काम कर रहा है इस बीच इस घर में उसके हाथ के नीचे से सैकड़ों रूपए निकल गए पर कभी उसका धर्म और नियत नहीं बिगड़ी। एक-एक आना भी उड़ाता तो काफी रकम जुड़ जाती।
प्रश्न घ: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
(i) "यह इंसाफ नहीं अँधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी!”
रसीला का मुकदमा किसके सामने पेश हुआ?
उत्तर:
रसीला का मुकदमा इंजीनियर जगत सिंह के पड़ोसी शेख सलीमुद्दीन ज़िला मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हुआ।
(ii) "यह इंसाफ नहीं अँधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी!”
रसीला पर किस आरोप पर किसने मुकदमा दायर किया था?
उत्तर:
रसीला वर्षों से इंजीनियर जगत सिंह का नौकर था। उसने कभी कोई बेईमानी नहीं की थी। परंतु इस बार भूलवश अपना अठन्नी का कर्ज चुकाने के लिए उसने अपने मालिक के लिए पाँच रूपए की जगह साढ़े चार रुपए की मिठाई खरीदी और बची अठन्नी रमजान को देकर अपना कर्ज चुका दिया और इसी आरोप में रसीला के ऊपर इंजीनियर जगत सिंह ने मुकदमा दायर कर दिया था।
(iii) "यह इंसाफ नहीं अँधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी!”
रसीला को अपने किस अपराध के लिए कितनी सजा हुई?
उत्तर:
रसीला ने अपने मालिक के लिए पाँच रुपए के बदले साढ़े चार रूपए की मिठाई खरीदी और बची अठन्नी से अपना कर्ज चुका दिया। यही मामूली अपराध रसीला से हो गया था। इसलिए रसीला को केवल अठन्नी की चोरी करने के अपराध में छह महीने के कारावास की सजा हुई।
(iv) "यह इंसाफ नहीं अँधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी!”
उपर्युक्त उक्ति का क्या कारण था स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रमजान ज़िला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन का चौकीदार था और वह रसीला का बहुत ही अच्छा मित्र था। जब ज़िला मजिस्ट्रेट अठन्नी के मामूली अपराध के लिए उसे छह महीने की सजा सुनाते हैं तो रमजान का क्रोध उबल पड़ता है क्योंकि वह जानता था कि फैसला करने वाले शेख साहब और आरोप लगाने वाले जगत बाबू दोनों स्वयं बहुत बड़े रिश्वतखोर अपराधी हैं लेकिन उनका अपराध दबा होने के कारण वे सभ्य कहलाते हैं और एक गरीब को मामूली अपराध के लिए इतनी बड़ी सजा दी जाती है इसी करण रामजान के मुँह से उपर्युक्त उक्ति निकलती है।
रसीला का मुकदमा किसके सामने पेश हुआ?
उत्तर:
रसीला का मुकदमा इंजीनियर जगत सिंह के पड़ोसी शेख सलीमुद्दीन ज़िला मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हुआ।
(ii) "यह इंसाफ नहीं अँधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी!”
रसीला पर किस आरोप पर किसने मुकदमा दायर किया था?
उत्तर:
रसीला वर्षों से इंजीनियर जगत सिंह का नौकर था। उसने कभी कोई बेईमानी नहीं की थी। परंतु इस बार भूलवश अपना अठन्नी का कर्ज चुकाने के लिए उसने अपने मालिक के लिए पाँच रूपए की जगह साढ़े चार रुपए की मिठाई खरीदी और बची अठन्नी रमजान को देकर अपना कर्ज चुका दिया और इसी आरोप में रसीला के ऊपर इंजीनियर जगत सिंह ने मुकदमा दायर कर दिया था।
(iii) "यह इंसाफ नहीं अँधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी!”
रसीला को अपने किस अपराध के लिए कितनी सजा हुई?
उत्तर:
रसीला ने अपने मालिक के लिए पाँच रुपए के बदले साढ़े चार रूपए की मिठाई खरीदी और बची अठन्नी से अपना कर्ज चुका दिया। यही मामूली अपराध रसीला से हो गया था। इसलिए रसीला को केवल अठन्नी की चोरी करने के अपराध में छह महीने के कारावास की सजा हुई।
(iv) "यह इंसाफ नहीं अँधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी!”
उपर्युक्त उक्ति का क्या कारण था स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रमजान ज़िला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन का चौकीदार था और वह रसीला का बहुत ही अच्छा मित्र था। जब ज़िला मजिस्ट्रेट अठन्नी के मामूली अपराध के लिए उसे छह महीने की सजा सुनाते हैं तो रमजान का क्रोध उबल पड़ता है क्योंकि वह जानता था कि फैसला करने वाले शेख साहब और आरोप लगाने वाले जगत बाबू दोनों स्वयं बहुत बड़े रिश्वतखोर अपराधी हैं लेकिन उनका अपराध दबा होने के कारण वे सभ्य कहलाते हैं और एक गरीब को मामूली अपराध के लिए इतनी बड़ी सजा दी जाती है इसी करण रामजान के मुँह से उपर्युक्त उक्ति निकलती है।